About Me

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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Saturday, January 28, 2012

क्यों डराता है ये ख्याल?

सब खुशी आ रही है, लेकिन सही वक्त का इंतजार अब भी है। पता नहीं वो दिन आएगा भी या नहीं। कल नए घर को सजाने के लिए पूरी तैयारी हो गई। सारा सामान भी नया आ गया। बहुत खुश हुई मै, सब मेरी पसंद का सामान, मेरी पंसद का डबल डोर फ्रिज, जरूरत से ज्यादा बड़ा एलसीडी, वॉशिंग मशीन, बेड, डाइनिंग और सब कुछ। दूसरे सामान की प्लानिंग, घर शिफ्ट करने की तैयारी! अपने घर को सजाने का एहसास ही कुछ खास है, ये इन दिनों मै महसूस कर रही हूं। लेकिन एक डर हमेशा दिल के कोने में घर बनाए है कि जिस घर को इतने चाव से सजा रही हूं इस घर में कभी रह भी पाऊंगी मै? ये ख्याल आते ही सिहर उठती हूं। मेरे मन में चाहते न चाहते हुए भी ये बात आ ही जाती है। पता नहीं वक्त के भरोसे सब छोड़ तो दिया है लेकिन क्या वक्त मेरे लिए कुछ अच्छा लेकर आएगा? क्या मेरे सजाए घर में मै रह पाऊंगी? इस घर की बॉलकोनी में भी हमारी छोटी-छोटी खुशी होगी? कुछ नहीं है सिर्फ ख्वाहिश है, उम्मीद है, सपने है और दुआ है। 

Monday, January 16, 2012

एक ख्वाब जो पूरा हुआ


फ्लैट की पहली तस्वीर
 
माही हो गयी बुकिंग...इतने सालों से जो ख्वाब देख रहा था आज पूरा हो गया है... शारिक के इस फ़ोन को सुनने के बाद मै कुछ बोल ही नहीं पाई, ख़ुशी आँखों से बहार आई... 10 जनवरी की यह तारिख उसकी ज़िन्दगी की सबसे ख़ास तारिख बन गयी है. इस ख़ुशी को बयां कर पाना शायद बहुत मुश्किल है. उसका हर ख्वाब इसी तरह पूरा हो.....Allahamdullilah...

sharique's todays facebook status...
"Falling short of words today... M so happy, the dream I have dreamt for many years came true.. Today I have booked my own flat and feeling of satisfaction is immense.. I thank ALLAH for his mercy... Allahamdullilah..."

Sunday, January 15, 2012

मूव ऑन...

deepika's 2days facebook status for me : 
जब जिंदगी ही ठहर गई है तो मै कैसे आगे बढ़ूं?
" Life is all about moving ahead...but sum ppl find it really difficult...a frend f mine is still trying her best to stay in that phase only. Dear, staying in love with someone even if you know you can't be together in future is like standing in rain... you know you will be sick but still you stand :( Move onnnnnnnnnnnnn...."

आज मेरी सबसे अच्छी दोस्त दीपिका ने फेसबुक में मेरे लिए मैसेज लिखा... मैसेज उसने इस गुस्से में लिखा कि क्यों मैने एक ऐसा एप्लीकेशन लिया जिसमें मै एक मैसेज छोड़ सकती हूं जो कि मेरे मरने के बाद फेसबुक पब्लिश करेगा। मैने भी उस एप्लीकेशन में एक मैसेज छोड़ा जो कि शायद मेरे मरने के बाद सबके सामने आए...खैर दीपिका के इस मैसेज को देखकर पहले कुछ रिएक्शन नहीं आया, फिर मुझे थोड़ी हंसी आई, फिर लगा जिंदगी के हर एक सच से हर इंसान वाकिफ होता है लेकिन जब उसे दूसरे को समझाना होता है तो आसान और खुद समझना होता है तो नामुमकिन हो जाता है। मूव ऑन बोलना सुनना कितना आसान है... मूव ऑन माही, मूव ऑन बेटा, मूव ऑन दोस्त, मूव ऑन बेबी मूव ऑन..मूव ऑन..मूव ऑन...
मै जानती हूं मुझे मूव ऑन बोलने वाला हर कोई मुझसे बहुत प्यार करता है, सोच रहा है मेरे बारे में कि कैसे मुश्किल जिंदगी हो सकती है मेरी... लेकिन क्या कोई माही को समझ रहा है?
कैसे करूं मूव ऑन...अपने पुराने फोन में मेरे और शारिक के एक दूसरे को जानने से भी पहले के मैसेज, पहली बार मिलने वाला दिन, पहली बार मिलने वाली जगह, पहली बार उसकी कार में बैठना (जो अब मेरी हो चुकी है), पहली बारिश, पहली बार उस फ्लैट में जाना जिसकी बॉलकनी को आज भी महसूस कर सकती हूं मै, पहली लड़ाई, पहली बार रूठना-मनाना, पहली बार बाइक में बैठना, मेट्रो स्टेशनों में शारिक का मेरे लिए इंतजार करना, घंटो मेरे ऑफिस के नीचे खड़े रहना और मेरे देर करने पर उसका अकेले जाकर टी-शर्ट खरीदना, पहली फिल्म, पहला तोहफा, पहली शॉपिंग, पहला बर्थडे, पहली बार मेरी फेवरेट आइक्रीम खाना, पहली बार मेरे लिए फूल, पहली तस्वीर, पहली रोक-टोक, पहला गुस्सा, पहली लांग ड्र्राइव, उसके दोस्तों से पहली बार मिलना, पहली बार मेरा उसे दीपिका को मिलाना, पहली बार उसके घर वालों से मिलना, घर वालों का प्यार, फिर उनका गुस्सा भी, सबकुछ ना जाने कितना कुछ....ना जाने कितनी ही बातें जो कि कागज में एक बार बैठकर उतारना ही संभव नहीं है। कैसे निकलूं? कैसे भूलूं दिल्ली और जयपुर के हर कोने को जहां हम न जाने कितने ही खूबसूरत पल गुजारते हैं, लड़ते हैं, गुस्सा होते हैं लेकिन फिर सारी बातें भूलकर आगे चलते हैं....
दीपिका मेरी जान मूव ऑन शब्द माही के लिए है ही नहीं.... जिंदगी उसके साथ या तो नहीं...

Thursday, January 12, 2012

मै वहीं हूं वक्त गुजर गया...

अभी लगता है कल की ही बात है, लेकिन कैलेंडर के पन्नों को उलट कर देखा तो अहसास हुआ कि बहुत वक्त गुजर चुका है। कल का पूरा दिन ऐसे ही गुजरा, उदास सुबह, उदास शाम। पता नहीं  क्या चल रहा था मेरे अंदर, कुछ लिखने का भी मन नहीं हुआ। दो-तीन बार लिखने के लिए बैठी। मन बुझा हुआ था, बुरा लग रहा था। ऑफिस के बाद जब कॉफी डे में अकेले जाकर बैठी तो लगा वो खलिश आज भी है और शायद कभी जाएगी भी नहीं, मै किसी से बात नहीं करना चाहती थी, शारिक से भी नहीं, उसने भी मुझे कोई फोन नहीं किया। मुझे लगा कि शायद साढ़े आठ बजे तक उसका फोन आए, मै बैठी थी कॉफी और किताब के साथ, तभी फोन बजा मां थीं, मां क फोन की घंटी से लगा कि देर हो चुकी है। घर जाने का भी मन नहीं था लेकिन जाती भी कहां..... पीछे मुड़कर देखती हूं तो लगता है मै वहीं खड़ी हूं और मेरे आस-पास से सब गुजर गया है, पता नहीं क्या चाहती है ये जिंदगी...खैर जिंदगी है, शायद एकदम सपाट गुजरे तो उसके होने का अहसास ही न हो...

Sunday, January 8, 2012

वे टू मून : 4


1 जनवरी 2012
सरिसका टाइगर रिसर्व

way to Sariska 
नील गाय
साल के आखिरी दिन यानी 31 दिसंबर को रामगढ़ और भानगढ़ के एडवेंचर ट्रिप के बाद 1 जनवरी 2012 को हम सब सरिसका की सफारी के लिए चले। सरिसका राजस्थान के अलवर जिले में पड़ता है। सरिसका की दोबारा बुकिंग करवा ली गई थी। अब बस हमें समय से वहां पहुंचना था लेकिन इतने सारे एक जैसे लोगों के साथ सही समय में घर से निकलना और सही समय में वहां पहुंचना थोड़ा मुश्किल काम है। खैर सब तैयार होकर थोड़ा बहुत खाने का सामान गाड़ी में रखकर, अपने आईडी कार्ड रखकर हम लोग सरिसका के लिए चल पड़े। जयपुर से सरिसका पहुंचने में भी करीब ढाई घंटा लगना था। :)
बस सरिसका पहुंचने के कुछ दूर पहले हम लोगों ने ढाबे में खाना खाया। इतना लजीज ढाबे का खाना एक अर्से बाद खाया था। क्या स्वाद था, मसालेदार मटर पनीर, तड़का दाल, सेव टमाटर, रोटी, छाज और सलाद....एकदम लाजवाब स्वाद। सबने खूब छककर खाया। यहां से भी सरिसका तक थोड़ा वक्त लगता। खाकर दोबारा सब गाड़ी में बैठ और निकले। लेकिन अभी थोड़ी ही दूर चले थे कि आमिर की तबीयत खराब हो गई। उसे थोड़ा आराम देने के लिए गाड़ी को किनारे लगाया गया। इतने में शारिक ने आवाज दी, देखा जहां गाड़ी रूकी है उसकी दूसरी तरफ सरसों के लहलहाते खेत, शारिक बोला माही फोटो लेते हैं, बस फिर क्या था हम लोगों ने खूब फोटो शूट किया। सरसों के खेत में दिलवाले दुल्हनियां के पोज में खूब फोटो खिंचवाई। :) :) अभी फोटो सेशन में व्यस्त ही थे कि अचानक घड़ी पर नजर पड़ी देखा अब हमें बहुत देर हो गई है। फटाफट गाड़ी में बैठे और सरिसका के रास्ते चले, रास्ता इतना खराब कि लग्जरी कार में बैठकर भी कमर जवाब देने लगी थी। अब हमें सरिसका का बोर्ड नजर आया और हमने गाड़ी लगाई।
me and sharique 

kashif 
लेकिन इस न्यू ईयर शायद सबकुछ बहुत आसान नहीं था। पहले से बुकिंग कराने के बाद भी वहां से हमें जीप देने से इंकार कर दिया गया। मै भी सीधा ऑफिसर के पास गई और नियम कायदों की किताब खाल दी, उसने भी अपनी गलती मानते हुए हमें जीप देने के लिए रसीद दे दी। शारिक लोग भी ऑफिसर से मेरे बेहस के एपीसोड को देखर इंप्रेस हो गए। जीप में चढ़कर सबके चेहरे पर मुस्कार आ गई। लेकिन जीप हमें दोपहर 3 बजे मिली जो कि डेढ़ बजे ही मिलनी चाहिए थी। अब हम लोग सरिसका के जंगल के लिए चले। मुझे पहले लग रहा था कि जू के जैसे तैयार किया हुआ कोई जंगल होगा लेकिन जैसे ही जीप लेकर उबड़-खाबड़ रास्ते से ड्राइवर चला तो मेरे होश उड़ गए। कुछ ही देर बाद हम एक बीहड़ जंगल में थे, जीप के आस पास से जंगली जानवर निकल रहे थे, हिरण, नील गाय, जंगली सूअर और तमाम तरह के जानवर अपनी गतिविधियों में मशगूल थे। हम लोगों को जीप से नीचे उतरना एकदम मना था, यहां तक कि शोर मचाना भी मना था जिससे जानवर डर के छिप न जाए। इतनी खूबसूरती देखकर मन खुशी से भर गया। जंगल के संकरे रास्ते से जब जीप चल रही थी और दूसरी तरफ गहरी खाई तो रोमांच के साथ ही डर भी लग रहा था। अब हम लोग टाइगर को देखने के लिए बेताब हो रहे थे, ड्राइवर ने बताया कि सुबह से एक भी ट्रिप के लोगों को टाइगर नजर नहीं आया है। लेकिन टाइगर गया इसी रास्ते से है क्योंकि उसके पैरों के निशान देखने को मिले। उस बीहड़ जंगल में छोटे-छोटे गांव भी थे जहां रहने वाले लोग आज के इस जमाने में भी उसी जंगल में रहकर अपना गुजारा चलाते हैं। वहां रहने वाले लोग शिक्षित नहीं है यहां तक कि छोटे बच्चे भी नहीं पढ़ते हैं। पढऩे जाए भी तो कहां?
शाम तक जंगल में खूब घूमे, जैसे-जैसे शाम ढल रही थी टाइगर की एक झलक देखने को मन और बेताब हो रहा था। लग रहा था कि टाइगर देखने के लिए ही इतनी मुश्किल से पहुंचे हैं और टाइगर ही नहीं दिखे तो कैसा लगे। लेकिन जब एकदम शाम हुई तो ड्राइवर बोला कि अभी खबर आई है कि टाइगर का लोकेशन उस पहाड़ों के पीछे हैं जो कि अभी यहां नहीं उतरेंगे। हमारे पूछने पर कि उन लोगों को कैसे पता चला तो बोला टाइगर के पैरों में सेंसर लगा है जिसे उसके मूवमेंट पता चलती है। अब हम उस जंगल से बाहर निकल रहे थे लग रहा था कि एक दूसरी ही दुनिया से निकलकर फिर अपनी शोर-शराबे वाली दुनिया में जा रहे थे। जंगल कितना अच्छा लग रहा था, चिडिय़ों की आवाज, खेलते जानवर, अपने आप में मस्त हिरण, खेलते बंदर, सफारी और जू के इस बड़े अंतर को देखकर बहुत ही अच्छा लगा।
अब हम जंगल से बाहर थे और शहर की तरफ निकल पड़े। हम तीन लोग को दिल्ली के लिए निकला था और शारिक, काशिफ और जामी को जयपुर लौटना था। हमने पाओटा के पास से बस ली   और दिल्ली के लिए रवाना हुए। रात के तीन बजे आमिर, सुहेब और और मै दिल्ली पहुंचे और इस तरह साल का पहला दिन सब लोगों के साथ एक यादगार दिन बना।

Tuesday, January 3, 2012

वे टू मून : 3

 भानगढ़ का भूतहा रास्ता
भानगढ़
bhangarh, me in centre with sharique n kashif

exploring cave
bhoot calling

Words just cant express what it is – three words, two people, one feeling.

रामगढ़ में फोटोग्राफी सेशन करने के बाद हम लोग वहां से करीब 70 कि.मी. दूर भानगढ़ के लिए निकल पड़े। भानगढ़ को भूतों का गांव कहा जाता है। सही में वहां के रास्तों को देखकर कुछ ऐसा ही लगा। सूनसान सड़कों पर कुछ नहीं, सिर्फ फैले खेत, पेड़ और बीच में पडऩे वाले कुछ गांव जहां बहुत थोड़े ही घर थे। रास्ता तो बहुत ही मस्त लग रहा था, नाम के मुताबिक ही हांटेड भी दिख रहा था। बीच-बीच में कुछ एक गांव के लोग नजर आते। रास्ते में ढेरों सरसों के खेत, एक छोटा गांव भी पड़ा जहां के लोग अपने ही काम में लगे हुए नजर आए। रास्ता पूछने पर गांव के लोग पूरे इत्मीनान से रास्ता भी बताते साथ ही ये भी कहते कि वो भूतों का गांव है, शाम होने से पहले लौट आना।
गांव के लोगों की इस तरह की बातें हमारे एक्साइटमेंट को और बढ़ा रही थी।जैसे-जैसे रास्ता कम हो रहा था लग रहा जल्द ही भूतों की नगरी वाले भानगढ़ पहुंचे।
आखिरी बहुत ड्राइव करने के बाद भानगढ़ आ ही गया। बहुत बड़ी जगह में फैला हुआ इसका किला, दूर-दूर तक जंगल और बड़ी घाटियां। देखकर लग रहा था पता नहीं लोग इसे भूतहा क्यों कहते हैं? इतनी सुंदर जगह में अगर रहने को मिल जाए तो मजा आ जाए। लेकिन वहां कुछ बात तो थी, रानी रत्नावती की कहानी और उसके किस्से मुझे उस जगह के हर कोने में नजर आ रहे थे। यही नहीं लोग सही में वहां भूत-प्रेत की पूजा में लगे थे। एक जगह तो तांत्रिक लोग ऐसे भजन औ किर्तन कर रहे थे कि मानों सही में भूत अभी आकर यहां खड़ा हो जाएगा। एक-एक गुफा में लग रहा था जैसे कितनी ही कहानियां हैं, टूटी हुई दिवारों में आज भी उन कहानियों को देखा जा सकता है। पूरे किले में जगह बोर्ड में उस समय की बातें लिखी थी। एक जगह तो ऐसी बनी थी जो कि उस समय वहां का बाजार था। जो भी कुल मिलाकर जगह बहुत ही अच्छी थी, हां शाम के बाद डरावनी जरूर हो गई थी। सूरज ढलने के बाद वैसे भी वहां जाना मना है।
खैर हमें भूत तो कहीं नहीं मिला लेकिन राजस्थान की इस खूबसूरती हम सब को बहुत ही अच्छी लग रही थी। किले की सबसे ऊंची जगह पर जब मै और शारिक बैठे और वहां से पूरी घाटी और भानगढ़ दिखा तो लगा जैसे इसी तरह घंटों बैठे रहें। इस तरह कुछ देर के लिए जब हम दोनों अकेले बैठे तो 31 दिसंबर की शाम बहुत ही अच्छी लग रही थी। मन ही नहीं कर रहा था कि वहां से लौटकर दोबारा जयपुर के लिए निकलें। शारिक से मैने कहा आखिरकर हम 31 दिसंबर को साथ में ही है। हर बार की साथ न होने की लड़ाई से इस बार हम बच गए। :P दोनों एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्काराए, तभी पीछे से जामी की आवाज आई, सुनिए जैसे ही मै पीछे मुड़ी तो उसने ये फोटो खींची। इस तरह 31 दिसंबर का दिन एक्साइटमेंट और एडवेंचर के साथ पूरा हुआ। रात का वापस जयपुर पहुंचे तब तक उसके दोनों भाई भी पहुंच गए थे। सब लोग साथ में खाना खाने गए। फिर देर रात तक बाहर रहे, आकर सब अगले दिन सरिसका जाने के लिए सो गए।


Monday, January 2, 2012

वे टू मून : 2

31 दिसंबर : रामगढ़ और भानगढ़ 
way to Ramgarh

my sahab
अब शुक्रवार रात यानी 30 दिसंबर को  सरिसका की बुकिंग की गई। दिल्ली से जाने वाले शारिक के दोनों भाइयों को बोला गया कि वे जयपुर नहीं पहुंचकर अलवर आए, हम भी सुबह यहां से निकलेंगे और रास्ते में मिल जाएंगे। रात को ये प्लान बना हम सो गए... ये क्या? सुबह निकलने के लिए सुबह जब तैयार हुए तो पता चला कि दोनों भाई अभी तक दिल्ली में ही है, दिल्ली जयपुर हाइवे में इतना जाम कि शाम से पहले वो पहुंच ही नहीं सकते। मेरा तो मूड खराब होना शुरू हो गया था। फिर भी हम लोग घर से निकले और उनसे बात करते रहे। आखिर करीब बारह बजे बात साफ हो ही गई कि दोनों किसी भी कीमत पर अलवर टाइम से नहीं  पहुंच पाएंगे।
इतनी प्लानिंग और फोन से मै अब झल्लाने लगी थी।  अब कार साइड में लगाकर हमने सरिसका की बुकिंग कैंसिल की। फिर शारिक ने कहा कोई बात नहीं हम रामगढ़ और भानगढ़ जो कि भूतों की नगरी कहलायी जाती है वहां चलते हैं। हम रामगढ़ और भानगढ़ के रास्ते निकल पड़े। मूड मेरा अब बहुत ज्यादा उखड़ गया था, हम लोग अब रामगढ़ के रास्ते मुड़ गए थे। रास्ते इतने खूबसूरत कि मानों सारी खूबसूरती राजस्थान को ही मिली हो। पहाड़ों के बीच से संकरे रास्ते से हमारी गाड़ी चलती है। इस रास्ते में ढेरों बंदर वहां आने-जाने वाली गाडिय़ों के साथ-साथ चलते हैं, कुछ खाने को दो तो खाते हैं। हम रामगढ़ पहुंचते हैं, गाड़ी से उतरने के बाद पीछे मुड़ते ही बड़ा पहाड़ और वहां से निकलती सूरज की किरण जब चेहरे पर पड़ती है तो मेरा सारा गुस्सा कहीं छू हो जाता है। :) :)
वहां उतरने के बाद खूब सारी फोटोग्राफी हुई, अब मुझे अच्छा लग रहा था, शहरों में रहकर इस तरह की खूबसूरती देखने को ही नहीं मिलती है। मै बहुत खुश थी, साल के आखिरी दिन हम इस तरह राजस्थान की खूबसूरती देखने के लिए निकले थे।

वे टू मून : 1

29 दिसंबर 2011 से 1 जनवरी 2012
my journey on roadways bus 
प्लानिंग के मुताबिक मै न्यू मनाने के लिए 29 तारीख को ही जयपुर के लिए निकल गई। शारिक को बताया भी नहीं था कि मै आ रही हूं। इस बार सफर में थोड़ा एक्साइटमेंट देने के लिए मैने वॉल्वो नहीं रोडवेज की बस में सफर किया। इस बस का भी एक्सपीरियंस हुआ और पैसे भी बचे :P
बस फिर क्या बस में एक बार नए तरीके से जयपुर के लिए निकल पड़ी। रोडवेज की बस का सफर पर बहुत नहीं सुहाया। खैर...सफर जैसा भी हो मै अपनी मंजिल में शाम के छह बजे पहुंच ही गई। इस बीच शारिक का दो बार फोन आया लेकिन मैने उसे बताया नहीं कि मै रास्ते में हूं। अचानक जयपुर उतरने के बाद उसे फोन किया थोड़ा गुस्सा होने के बाद बोला, क्रिस्टल पाम मॉल के पास आओ, मै वहीं से लेता हूं तुमको। बस मैने ऑटो किया और पहुंच गई क्रिस्टल पाम, शारिक आया और हम घर चले गए। :)
अगले दिन सुबह नींद खुली तो देखा दोनों ही ऑफिस के लिए तैयार हो रहे थे। शारिक के लिए टिफिन तैयार किया। जनाब को मटर-आलू बहुत पसंद है तो सोचा सुबह मटर-आलू ही बना देते हैं। चाय पीने के बाद दोनों निकल गए और मै हमेशा की तरह बड़े से मकान को घर बनाने में लग गई। पूरा दिन निकल गया घर ठीक करते-करते। इस बीच दोनों को फोन भी किया, लेकिन काशिफ साहब अपनी मीटिंग में और ये साहब अपनी मीटिंग में। :(
मै भी अकेले कहीं बाहर जाने के मूड में नहीं थी। शाम में देखा तो शारिक का भाई भी पहुंचा। फिर सब मिलकर शनिवार को सरिसका जाने का प्लान बनाने लगे। शारिक और काशिफ के भाई भी शनिवार को जयपुर पहुंचने वाले थे और सबका मिलकर घूमने जाने का प्लान बना। इस बीच रात को खाना बनाने के बाद मै और शारिक घर के पास ही टहलने के लिए निकल पड़े, थोड़ा झगड़ा भी किया और खूब सारी आइसक्रीम भी खाई जिसके बाद आज तक गला खराब है।